44 साल बाद टूटा रिकॉर्ड मचा हाहाकार

44 साल बाद टूटा रिकॉर्ड मचा हाहाकार

नेपाल में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार मूसलाधार बारिश और उसके बाद नेपाल में स्थित कोसी बराज के रविवार को 56 के 56 गेट खोल देने के बाद बिहार को बड़ा झटका।
गोपालगंज में एनएच-27 पर ब्रिज चाटी ग्रश्त

कोसी नदी, जिसे ‘बिहार का शोक’ माना जाता है, में जलस्तर में वृद्धि के कारण सुपौल, सहरसा और मधेपुरा जैसे जिलों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति बिहार के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

छपरा: गंडक नदी के बढ़ते जल स्तर को देखते हुए छपरा प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए माइकिंग शुरू कर दी है। निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल है।

सीवान: गुठनी में सरयू नदी के जल स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भय का माहौल बना हुआ है। सरयू नदी का वर्तमान जल स्तर 60.04 मीटर है, जो वार्निंग लेवल से 0.22 सेमी ऊपर है। इस कारण निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भरने लगा है।

बाढ़ की त्रासदी: शनिवार देर शाम सीतामढ़ी के रघुनाथपुर (भारत-नेपाल सीमा) के पास नेपाल के सर्लाही जिले के पांच लोग बाढ़ के पानी में डूब गए, जिससे इलाके में दहशत फैल गई है।

वीटीआर में बाघों का आशियाना बाढ़ से प्रभावित: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के निचले इलाकों में गंडक बराज से पानी छोड़े जाने के बाद तबाही मच गई है। रिजर्व से होकर गुजरने वाली एक दर्जन से अधिक पहाड़ी नदियों के उफान से बाघों का आवास बाढ़ के पानी से भर गया है। वन्यजीवों के लिए चारे और सुरक्षित स्थानों की कमी हो गई है।

नदियों का कहर और ग्रामीण इलाकों में संकट: पंडई, दौरहम, जमुआ, मनियारी, हड़बोड़ा, अमहवा, द्वारदह, गंगुली जैसी छोटी-बड़ी पहाड़ी नदियों का जलस्तर बढ़ने से कई गांवों में पानी प्रवेश कर चुका है। जिले की कई सड़कों पर भी पानी चढ़ गया है, जिससे आवागमन बाधित हो गया है। लगातार हो रही बारिश ने पूर्वी चंपारण की नदियों को भी उफान पर ला दिया है। लालबकेया नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है, और बंजरिया क्षेत्र में नेपाल से निकलने वाली दुधौरा नदी का तटबंध टूट गया है।

अन्य जिलों में बाढ़ की स्थिति: सीतामढ़ी में बागमती, लालबकेया, अधवारा, रातो और हरदी नदियों के उफान से स्थिति विकट हो गई है। वहीं मधुबनी में कमला, कोसी और भूतही बलान नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। जिला प्रशासन ने बताया है कि जयनगर और झंझारपुर में कमला नदी और फुलपरास में भूतही बलान नदी के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे प्रभावित इलाकों में प्रशासन ने अलर्ट जारी किया है।

गंडक और कोसी के निचले इलाकों में बाढ़: समस्या, प्रभाव, और समाधान

परिचय: भारत के पूर्वी और उत्तरी बिहार के कई जिले प्रतिवर्ष बाढ़ की चपेट में आते हैं। खासकर, गंडक और कोसी नदियों के निचले इलाकों में रहने वाले लोग हर साल बाढ़ के कहर का सामना करते हैं। इन नदियों के जल स्तर में वृद्धि होने पर गांवों और कस्बों में तबाही मच जाती है। इस लेख में हम गंडक और कोसी की बाढ़ के कारण, इसके प्रभाव, और इससे निपटने के संभावित उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


बाढ़ के कारण:

  1. मानसून और भारी वर्षा: बिहार और इसके पड़ोसी राज्यों में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे गंडक और कोसी नदियों में पानी की मात्रा अचानक से बढ़ जाती है। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भी भारी वर्षा के कारण नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ता है, जो भारत के निचले इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है।
  2. जल निकासी व्यवस्था की कमी: निचले क्षेत्रों में जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने से बाढ़ के समय पानी आसानी से बह नहीं पाता। इससे बाढ़ का पानी लंबे समय तक रुका रहता है, जो खेतों, सड़कों और घरों को नुकसान पहुंचाता है।
  3. तटबंधों का कमजोर होना: तटबंध, जिनका उद्देश्य नदियों के पानी को नियंत्रित करना होता है, समय के साथ कमजोर हो जाते हैं। बारिश के मौसम में या बाढ़ की स्थिति में तटबंध टूट जाते हैं, जिससे पानी गांवों में प्रवेश कर जाता है। हाल ही में नेपाल से निकलने वाली दुधौरा नदी का तटबंध टूटने की घटना ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।
  4. वनों की कटाई और भूमि क्षरण: नदियों के किनारे वनों की कटाई और पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि क्षरण भी बाढ़ के प्रमुख कारणों में शामिल हैं। जब पेड़ और पौधे नहीं होते, तो बारिश का पानी सीधा नदियों में चला जाता है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।

बाढ़ के प्रभाव:

  1. मानव जीवन पर प्रभाव: बाढ़ से प्रभावित इलाकों में लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के घर, खेती की जमीन और पशुधन बर्बाद हो जाते हैं। सीवान, छपरा, और सीतामढ़ी जैसे जिलों में, गंडक और सरयू नदियों के बढ़ते जल स्तर ने लोगों को सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। प्रशासन द्वारा लगातार माइकिंग के जरिए लोगों को अलर्ट किया जा रहा है।
  2. खेतों और फसलों को नुकसान: गंडक और कोसी के निचले क्षेत्रों में कृषि प्रधान क्षेत्र हैं। बाढ़ के दौरान खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। धान, मक्का, गेहूं और अन्य फसलों की बर्बादी से न केवल किसानों की आय प्रभावित होती है, बल्कि खाद्य संकट भी पैदा हो सकता है।
  3. वन्यजीवों पर प्रभाव: बाढ़ का असर केवल मनुष्यों पर ही नहीं, बल्कि वन्यजीवों पर भी पड़ता है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में गंडक बराज से छोड़े गए पानी के कारण बाघों के आशियाने जलमग्न हो गए हैं। यहां के वन्यजीवों के आवास और चारे की समस्या गंभीर हो गई है। इस संकट से निपटने के लिए वन्यजीव विभाग द्वारा विशेष बचाव अभियान चलाए जा रहे हैं।
  4. स्वास्थ्य संकट: बाढ़ के पानी के साथ गंदगी और दूषित पानी का फैलाव होने से कई बीमारियां फैलती हैं। मलेरिया, डेंगू, और जल जनित बीमारियां जैसे दस्त, हैजा आदि तेजी से फैलते हैं। प्रभावित क्षेत्रों में पीने के साफ पानी की कमी हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और भी गंभीर हो जाती हैं।

बाढ़ से निपटने के उपाय (उपाय):

  1. तटबंधों की मजबूती और नियमित रखरखाव: बाढ़ से बचने के लिए सबसे पहले तटबंधों को मजबूत और सुदृढ़ बनाना होगा। तटबंधों का नियमित निरीक्षण और मरम्मत जरूरी है, ताकि वे बाढ़ के समय टूटने से बच सकें। नेपाल के साथ मिलकर दोनों देशों को नदी प्रबंधन पर अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि पानी की निकासी को सही तरीके से नियंत्रित किया जा सके।
  2. जल संचयन और जल निकासी व्यवस्था में सुधार: बाढ़ से बचने के लिए जल संचयन और जल निकासी की व्यवस्था को सुदृढ़ करना आवश्यक है। खेतों में जल निकासी की नालियों का निर्माण और तालाबों की सफाई करके बाढ़ के पानी को नियंत्रित किया जा सकता है। जल प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए, बारिश के पानी को संग्रहित और सही तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।
  3. वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण: बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए नदियों के किनारे वनों का संरक्षण और पुनर्वनीकरण जरूरी है। पेड़ और पौधे मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और बाढ़ के पानी को अवशोषित करने में मदद करते हैं। सरकार और स्थानीय समुदायों को मिलकर वनीकरण अभियान चलाने चाहिए।
  4. आधुनिक तकनीक और सैटेलाइट मॉनिटरिंग: बाढ़ की पूर्व सूचना और चेतावनी देने के लिए आधुनिक तकनीकों और सैटेलाइट मॉनिटरिंग का उपयोग करना चाहिए। सैटेलाइट से मिलने वाले डेटा का उपयोग करके बाढ़ संभावित क्षेत्रों की जानकारी पहले ही प्राप्त की जा सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।
  5. बाढ़ शरण स्थल और राहत कार्य: बाढ़ प्रभावित इलाकों में शरण स्थलों का निर्माण और राहत कार्यों की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रशासन को पहले से ही ऐसे क्षेत्रों की पहचान करके वहां पर पर्याप्त भोजन, दवाइयां, और पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। ग्रामीण इलाकों में बाढ़ के समय लोगों को सुरक्षित शरण स्थलों तक पहुंचाने के लिए नावों और अन्य साधनों की व्यवस्था करनी चाहिए।
  6. बाढ़ बीमा योजना: सरकार को किसानों और ग्रामीणों के लिए बाढ़ बीमा योजना लागू करनी चाहिए। इससे बाढ़ के समय होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकेगी। कृषि बीमा योजना का विस्तार करते हुए बाढ़ से प्रभावित किसानों को राहत दी जा सकती है।
  7. जन जागरूकता अभियान: बाढ़ के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए। ग्रामीण इलाकों में माइकिंग, रेडियो, और मोबाइल संदेशों के जरिए लोगों को समय पर चेतावनी दी जानी चाहिए। साथ ही, स्कूलों और समुदायों में बाढ़ से निपटने के तरीकों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष:

गंडक और कोसी नदियों की बाढ़ बिहार के लिए एक स्थायी समस्या रही है। हर साल लाखों लोग इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होते हैं। लेकिन यदि सही कदम उठाए जाएं और उपायों को लागू किया जाए, तो बाढ़ के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। तटबंधों की मरम्मत, जल संचयन और जल निकासी में सुधार, वन संरक्षण, और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली जैसी योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू करके हम बाढ़ से निपट सकते हैं। सरकार, स्थानीय प्रशासन, और जनता को मिलकर इस समस्या का समाधान खोजना होगा, ताकि भविष्य में बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।